नमस्कार!
मेरा ये मानना है की किसी भी इंसान की हत्या का कोई जस्टिफिकेशन यानी औचित्य नहीं हो सकता है. पूरा देश नाथूराम गोडसे को जानता है, क्योंकि उसने महात्मा गाँधी की हत्या की थी. लेकिन मैं अगर बोलूं की नाथूराम गोडसे एक देशभक्त था, तो आप चौंकिएगा नहीं.
भारतीय इतिहासकारों ने हमारे इतिहास को इस तरह से ट्विस्ट कर के लिखा है, जिसकी परिधि हमेशा कांग्रेस और उसके अनुयायियों के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है.
नाथूराम विनायकराव गोडसे का जन्म महाराष्ट्रियन चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। हममें से अधिकांश पेशवा बाजीराव के बारे में जानते हैं, गोडसे भी उसी समुदाय के थे। ऐसा कहा जाता है कि चितपावन ब्राह्मण अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज और मातृभूमि के लिए बहुत सुरक्षात्मक हैं।
मैं मानता हूँ की मेरे या मेरे किसी समकक्ष द्वारा की गयी गलती दो-चार लोगों को प्रभावित कर सकती है, लेकिन एक मास लीडर, जैसे गांधी द्वारा की गयी गलती का हर्ज़ाना लाखों, करोड़ों लोगों को चुकाना पड़ सकता है, और वही हर्ज़ाना हमारे पूर्वजों ने चुकाया.
भारत के स्वतंत्रता की यह शर्त थी कि इसका 17.5 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान में जाएगा और शेष 82.5% भारत में जाएगा। यह गांधी थे जिन्होंने पाकिस्तान की हिस्सेदारी 20% तक बढ़ा दी थी। विभाजन के समय खून से रक्त रंजीत अपनी भूमि यानी हिन्दू-मुसलमान दंगों के लिए मैं तो सिर्फ महात्मा को ही जिम्मेदार मानता हूँ.
मैं मानता हूँ की गाँधी जी के वजह से ही हमारे स्वतंत्रता में विलम्ब हुआ. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इंग्लैंड ने हमें स्वतंत्र करने की योजना बना ली थी, लेकिन उस समय गाँधी को छोड़ कर कोई भी ऐसा प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी उनके समकक्ष था भी नहीं, इसलिए उस स्वतंत्रता के सूत्रधार वही माने गए और रही सही कसर हमारे इतिहासकारों ने पूरा कर दिया.
बंगाली पुस्तक सुनुन धर्मावतार की मानें तो गोली लगने के बाद महात्मा गाँधी के मुख से "हे राम" शब्द निकला ही नहीं था. इसे भी झूठ प्रचारित किया गया और उसके बाद गोडसे ने खुद पुलिसवालों को बोला की मुझे गिरफ्तार करो, क्योंकि गोडसे को ये पता था की उसने गलत किया है और उसके विरोध का तरीका बिलकुल नृशंस है.
महात्मा गाँधी ने लोगों या भारत की भलाई से पहले अपनी स्वार्थी नीतियां लागू कीं। भले ही नेताजी को अधिकांश वोट मिले, लेकिन गांधी ने उन्हें राष्ट्रपति नहीं बनाया। कांग्रेस ने भी, सरदार पटेल को भारत का पहला प्रधानमंत्री बनाने का निर्णय लिया। लेकिन गांधी ने इसके खिलाफ जाकर अपने निजी पसंदीदा, नेहरू जी को चुना। क्या ये तर्कसंगिक था, और क्या आपको किसी किताब में मिलेगा?
क्या आप जानती हैं की महात्मा गाँधी के खुद के सुपुत्र ने सरकार के समीप ये गुहार लगाईं थी की नाथूराम गोडसे को दोषमुक्त किया जाए. अगर किसी का बच्चा अपने पिता के हत्यारे के लिए क्षमा याचना कर रहा हो, तो कहीं ना कहीं उसके पिता में दोष तो होगा ही.
आखिर क्या वजह थी की अगर नाथूराम गलत था तो उसके न्यायालय के बयान, अदालत में उसके तर्कों, उसके पत्रों को जनता के लिए गुप्त रखा गया? इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि गोडसे के मुकदमे में शामिल होने वाले एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने बाद में कहा कि जूरी ने नाथूराम को 'दोषी नहीं' पाया था और उसकी हत्या में जस्टिफिकेशन था। यह अभी भी अज्ञात है कि उसे क्यों दंडित किया गया था। ऐसी संभावना है कि उनके फैसले को भ्रष्ट लोगों ने पलट दिया था और यही वजह है कि वास्तविक फैसले या अदालती सुनवाई का जनता के सामने कभी खुलासा नहीं किया गया।
लेकिन ये सवाल अवश्य उठता है की क्या नाथूराम गोडसे का महिमामंडन होना चाहिए? तो मेरा उत्तर है बिलकुल नहीं. क्योंकि उसने एक ऐसे बूढ़े व्यक्ति को मारा था, जिसके पास सिक्योरिटी नाम की कोई चीज़ नहीं थी और वो प्रार्थना करने जा रहा था और गोडसे की गोली से मरने वाला एक भारतीय था. शायद गाँधी जी की हत्या के बाद, कांग्रेस के कुकृत्यों का उत्तर मांगने का अवसर हमने गँवा दिया. हाँ उसका महिमांडन मैं अवश्य करता अगर उसने जिन्ना को गोली मारी होती या बॉर्डर पार पाकिस्तानियों को गोली मारी होती, जो भारत में आक्रमण कर रहे थे.
लेकिन अंततः गोडसे को फांसी की सजा हुई, लेकिन फांसी से पहले उसका स्टेटमेंट था ‘'गांधी को राष्ट्रपिता कहा जा रहा है। लेकिन अगर ऐसा है, तो उन्होंने अपने कर्तव्य को विफल कर दिया क्योंकि उन्होंने देश के लिए अपनी सहमति से देश के विभाजन के लिए बहुत विश्वासघाती कार्य किया है। मैं दृढ़ता से कहता हूं कि गांधी अपने कर्तव्य में विफल रहे हैं। वह पाकिस्तान के पिता साबित हुए हैं। उनकी आंतरिक आवाज, उनकी आध्यात्मिक शक्ति और उनके अहिंसा के सिद्धांत, जिससे बहुत कुछ बनता है, जिन्ना की बड़ी इच्छा के आगे सभी गिर गए और शक्तिहीन साबित हुए। संक्षेप में, केवल एक चीज जो मैं लोगों से उम्मीद कर सकता हूँ की लोग मुझे नफरत के अलावा कुछ भी नहीं देंगे और मैंने अपना सारा सम्मान खो दिया है, गांधी जी को मार के। लेकिन साथ ही, मुझे लगा कि गांधीजी की अनुपस्थिति में भारतीय राजनीति निश्चित रूप से व्यावहारिक, जवाबी कार्रवाई करने में सक्षम साबित होगी और सशस्त्र बलों के साथ शक्तिशाली होगी। इसमें कोई शक नहीं, मेरा अपना भविष्य पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगा, लेकिन राष्ट्र पाकिस्तान के संकट से बच जाएगा। लोग मुझे किसी भी समझदारी या मूर्खता से रहित कह सकते हैं, लेकिन राष्ट्र उस पाठ्यक्रम का पालन करने के लिए स्वतंत्र होगा, जिसे मैं मजबूत राष्ट्र निर्माण के लिए आवश्यक मानता हूं।”
"मुझे बड़े अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि प्रधान मंत्री नेहरू यह भूल जाते हैं कि उनके उपदेश और कर्म कई बार एक-दूसरे के साथ अलग-अलग होते हैं जब वह भारत के बारे में एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के रूप में बात करते हैं, क्योंकि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि नेहरू ने पाकिस्तान के लोकतांत्रिक राज्य की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभाई है, और गांधी की मुस्लिमों के प्रति तुष्टिकरण की लगातार नीति से उनका काम आसान हो गया था। अब मैं अदालत के सामने खड़ा हूं कि मैंने जो भी किया है उसके लिए अपनी जिम्मेदारी का पूरा हिस्सा स्वीकार करूं और न्यायाधीश निश्चित रूप से मेरे खिलाफ ऐसे आदेशों को पारित करें जिन्हें उचित माना जा सकता है। लेकिन मैं यह जोड़ना चाहूंगा कि मुझे किसी दया की इच्छा नहीं है जो मुझे दिखाई जाए, और न ही मेरी इच्छा है कि कोई और मेरी तरफ से भीख मांगे। मेरी कार्रवाई के नैतिक पक्ष के बारे में मेरा आत्मविश्वास सभी पक्षों पर इसके खिलाफ की गई आलोचना से भी हिला नहीं है। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि इतिहास के ईमानदार लेखक मेरे कृत्यों का आकलन करेंगे और भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्य पाएंगे"
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धन्यवाद्.
copied : quora , Santosh Singh
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